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________________ १७३ प्रश्न - क्षमा किस तरह माँगी जाती है ? उत्तर -- प्रथम गुरुको आज्ञा लेकर तथा उनकी स्वीकृतिपूर्वक नीचे झुक कर भूमिपर मस्तक टेककर बाँये हाथमें धारण की हुई मुहपत्ती से ( प्रतिक्रमण के अतिरिक्त वन्दना के प्रसङ्गमें गृहस्थोंको दुपट्टे से ) मुख आच्छादित करके तथा दाँया हाथ गुरुके चरणपर रखकर ( ऐसा न हो सके तो उनकी ओर हाथ लम्बा करके अपने अपराधों की क्षमा मांगी जाती है । मूल ३४ प्रायरियाइ - खामरणासुत्तं 'आयरिय - उवज्झाए ' -सूत्र ] [ गाहा ] आयरिय - उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल - गणे अ । जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि ||१|| सव्वस्स समणसंघस्स, भगवओ अंजलिं करिअ सीसे । सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि || २ || सव्वरस जीवरासिस्स, भावओ धम्म - निहिअ - निय-चित्ता । सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ॥ ३ ॥ शब्दार्थ आयरिय-उवज्झाए - आचार्य और उपाध्यायके प्रति । Jain Education International सीसे - शिष्यपर | साहम्मिए - साधर्मिक के प्रति । सार्मिक-समान धर्मवाला । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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