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(६) संलावे.
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- बातचीत करते समय जिस तरह मान रखने में
सचेत रहना चाहिये, वैसा नहीं हुआ हो तब ।
(७) उच्चासणे - गुरुके आसनसे अपना आसन ऊँचा रखा हो तब |
(८) समासणे - गुरुके जितना ही अपना आसन ऊँचा रखना हो तब |
(९) अन्तरभासाए - - गुरु किसी के साथ वार्तालाप करते हों और बीच में बोल गये हों तब ।
(१०) उवरिभासाए - - गुरुके ऊपर होकर कोई बात कही गयी हो तब |
प्रश्न -- विनय - रहित कृत्य होना कब सम्भव है ?
उत्तर - किसी भी समय । शिष्यको गुरुके साथ अनेक प्रकारके कार्य होते हैं, अतः प्रत्येक समय उसको गुरुके प्रति योग्य विनय करना चाहिये, परन्तु किसी कारणवश उसका ध्यान न रहे तो विनयरहित कृत्य होता है ।
प्रश्न - शिष्य जान-बूझकर गुरुका विनय नहीं करे तो ?
उत्तर - तो वह महादोषका भागी होता है और उसकी सब साधना निष्फल हो जाती है । शास्त्रोंमें कहा है कि :- - जो साधु (शिष्य) गुरुका विनय यथार्थ रूपसे नहीं करता है, और मोक्षकी इच्छा करता है, वह जीवितकी इच्छा करते हुए अग्नि में प्रवेश करनेका कार्य करता है । इसलिये यहाँ भूल चूकका प्रसङ्ग समझना चाहिये | किसी समय भूल होनेके पश्चात् शिष्यको ध्यान आ जाता है कि मुझसे भूल हुई और किसी समय ऐसा ध्यान बिलकुल नहीं आता है, यद्यपि गुरुको इस बात का ध्यान आ जाता है । अतएव ऐसे समस्त अपराधों की क्षमा माँगी जाती है ।
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