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सूत्र-परिचय
इस सूत्रद्वारा आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, सार्मिक, कुल, गण तथा सकल श्रमणसध के प्रति क्रोधादि कषायोंसे जो अपराध हुए हों उनकी क्षमा मांगी जाती है। इसी प्रकार सकल जीवराशि से क्षमा मांगकर उनको क्षमा दी जाती है।
३५ सुप्रदेवया-थुई
[ श्रुतदेवताकी स्तुति ] मूल[सुअदेवयाए करेमि काउस्सग्गं । अन्नत्थ० ]
[ गाहा ] सुअदेवया भगवई, नाणावरणीअ-कम्म-संघायं । तेसिं खवेउ सययं, जेसि सुअ-सायरे भत्ती ॥१॥ शब्दार्थ[सुअदेवयाए-श्रुतदेवताके लिये, तेसि-उनके । श्रुतदेवीकी आराधनाके लिये।
खवेउ-खपाओ, क्षय करो। करेमि काउस्सगं-मैं कायोत्सर्ग
सययं-सदा। करता हूँ। सुअदेवया-श्रुतदेवी।
जेसि-जिनकी। भगवई-पूज्य ।
सुअ-सायरे --प्रवचनरूपी समुद्रके नाणावरणीअ-कम्म-संघायं
ज्ञानावरणीय-कर्मके समूहका । | भत्ती-भक्ति ।
विषयमें।
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