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________________ १६८ उत्तर-इसका उत्तर वंदित्तु-सूत्रको ४८ वीं गाथामें दिया गया है; वह इस प्रकार :पडिसिद्धाणं करणे, किच्चाणमकरणे अ पडिक्कमणं । असद्दहणे अ तहा, विवरीअ-परूवणाए अ॥४८॥ निषिद्ध किये गये कृत्योंको करनेसे, करने योग्य कृत्योंको नहीं करनेसे, अश्रद्धा उत्पन्न होनेसे और श्रीजिनेश्वरदेवके उपदेशसे विपरीत प्ररूपणा करनेसे प्रतिक्रमण करना आवश्यक होता है । प्रश्न-प्रतिक्रमणका फल क्या है ? उत्तर-दोषोंकी निवृत्ति, आत्माको शुद्धि । प्रश्न-प्रतिक्रमण कौन करे ? उत्तर-साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका । प्रश्न-इन सबका प्रतिक्रमण एक समान होता है अथवा पृथक् पृथक् ? उत्तर-पृथक् पृथक् । साधु-साध्वी साधु-धर्म में लगे हुए अतिचारोंका प्रतिक्रमण करे और श्रावक-श्राविका श्रावक-धर्म में लगे हुए अतिचारोंका प्रतिक्रमण करे । परन्तु दोनों प्रतिक्रमणोंमें कुछ सूत्र समान होते हैं, इसलिये साधु तथा श्रावक और साध्वी तथा श्राविका साथ बैठकर प्रतिक्रमण कर सकते हैं। ३३ गुरुखामरणा-सुत्तं [ 'अब्भुडिओ'-सूत्र ] [शिष्य ] इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! अब्भुडिओ हं अभिंतर-देवसि ( राइअं) खामेउं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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