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________________ करना; वह गमन । इत्वरगृहीता - अल्प समयके लिये ग्रहण करने में आयी हुई स्त्री अर्थात् रखात ( पासवान ) अथवा वेश्या । १३२ अनङ्ग - क्रीडा - कामवासना जागृत करनेवाली क्रिया । अर्थ-सङ्कलना मूल अपरिगृहीता - अपरिगृहीता - गमन, इत्वरगृहीता-गमन, अनङ्ग-क्रीडा, परविवाहकरण और तीव्र - अनुराग के कारण चौथे व्रतके विषय में दिवससम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ।। १६ ।। परविवाह - करण- अपने अथवा लड़की अतिरिक्त शब्दार्थ इत्तो - हाँसे, अब I अणुव्वये पंचमम्मि - पाँचवें अणुव्रत के विषय में | Jain Education International* लड़के आश्रितोंके दूसरोंके विवाह आदि करना - कराना | तीव्र - अनुराग - विषय-भोग करनेकी अत्यन्त आसक्ति । चउत्थवयस्स इआरे-चौथे व्रतके अतिचारोंको । पडिक्कमे देसिअं सव्वं - पूर्ववत् ० इत्तो अणुव्वये पंचमम्मि आयरिअमप्पसत्यम्मि । परिमाण - परिच्छेए, इत्थ पमाय -- पसंगेणं ॥ १७ ॥ आचरण किया हो । परिमाण-परिच्छेए परिमाण परिच्छेदके विषयमें परिग्रहपरिमाण - व्रत में अतिचार लगे आयरिअमप्पसत्यम्मि[-अप्रशस्त ऐसा । भावका उदय होनेसे जो कोई | इत्थ पमाय -प्पसंगेणं - पूर्ववत् ० For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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