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________________ १३० भावका उदय होनेसे स्थूल - अदत्तादान - विरमण - व्रतमें अतिचार लगे ऐसा जो कोई आचरण किया हो, उससे मैं निवृत्त होता हूँ ।। १३ ।। मूल तेनाहड - प्पओगे, तप्पडिरूवे विरुद्ध-गमणे अ । कूडतुल- कूडमाणे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ॥ १४ ॥ शब्दार्थ— तेनाहड-पओगे - स्तेनाहूत तथा स्तेन - प्रयोगमें, चोरद्वारा लायी वस्तु रखलेनेसे और चोरी करनेका उत्तेजन मिले ऐसे वचन बोलनेसे | तेन - चोर, आहड - लायी गयी । करनेका स्तेन प्रयोग- चोरी उत्तेजन मिले, ऐसे वचन बोलना | तपsिa - नकली माल बेचनेसे, माल में किसी तरहकी मिलावट करनेसे । विरुद्ध-गमणे - राज्यके नियमोंसे विरुद्ध गमन करनेसे | तौल कूडतुल- कूडमाणे - झूठा तौलनेसे झूठा मापनेसे, झूठा तौल तथा झूठे मापका उप 1 Jain Education International योग करनेसे | पडिक्कमे देसिअं सव्वं पूर्ववत् ० अर्थ- सङ्कलना चोरद्वारा लायी हुई वस्तु रख लेनेसे, चोरी करनेका उत्तेजन मिले, ऐसा वचन - प्रयोग करनेसे, मालमें मिलावट करनेसे, राज्यके विरुद्ध गमन करनेसे और झूठा तौल तथा झूठे मापका उपयोग करनेसे, दिवस - सम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ॥ १४ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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