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________________ अ-और। । विषयमें। बीयवयस्स इआरे-दूसरे व्रतके | पडिक्कमे देसि सव्वं-पूर्ववत्० अर्थ-सङ्कलना बिना विचारे किसीको दूषित कहनेसे ( किसी पर दोषारोपण करनेसे ), कोई मनुष्य गुप्त बातें करते हों, उन्हें देखकर मनमाना अनुमान लगानेसे, अपनी स्त्रीको गुप्त बात बाहर प्रकाशित करनेसे, मिथ्या उपदेश अथवा झूठी सलाह देनेसे तथा झूठी बात लिखनेसे दूसरे व्रतके विषयमें दिवस-सम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ।। १२ ।। मूल तइथे अणुव्वयम्मी, थूलग-परदव्व-हरण-विरईओ । आयरियमप्पसत्थे, इत्थ पमाय-पसंगेणं ॥ १३ ॥ शब्दार्थतइ अणुव्वयम्मी-तीसरे अणु- लगे ऐसा। व्रतके विषयमें। थूलग-परदव्व-हरण-विरई - थूलग-परदव्व-हरण-विरईओ- दूसरेके धनको हरण करनेका स्थूल--परद्रव्य-हरणकी विरतिसे स्थूल रूपमें त्याग करना। दूर हो ऐसा, स्थूल-अदत्तादान- | आयरियमप्पसत्थे इत्थ पमायविरमण-व्रतमें अतिचार प्पसंगणं-पूर्ववत्० अर्थ-सङ्कलना अब तीसरे अणुव्रतके विषयमें (लगे हुए अतिचारोंका प्रतिक्रमण किया जाता है।) यहाँ प्रमादके प्रसङ्गसे अथवा क्रोधादि अप्रशस्त प्र-९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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