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________________ १२८ शब्दार्थबीए अणुव्वयम्मो-दूसरे अणु-। परिथूलग-स्थूल । अलियव्रतके विषयमें। वयण--झूठे वचन, मृषावाद । परिथूलग-अलिय-क्यण- विरति-विरमण-व्रत । विरईओ-स्थूल मृषावाद- आयरियमप्पसत्थे इत्थ विरमणव्रतमें, अतिचार लगे ऐसा। पमाय-प्पसंगणं-पूर्ववत्० अर्थ-सङ्कलना__ अब दूसरे अणुव्रतके विषयमें (लगे हुए अतिचारोंका प्रतिक्रमण किया जाता है ।) यहाँ प्रमादके प्रसङ्गसे अथवा क्रोधादि अप्रशस्त भावका उदय होनेसे स्थूल-मृषावाद-विरमण-व्रतमें अतिचार लगे ऐसा जो कोई आचरण किया हो, उससे मैं निवृत्त होता हूँ॥११॥ मूल सहसा-रहस्स-दारे, मोसुवएसे अ.कूडलेहे अ । बीयवयस्स इआरे, पडिकमे देसि सव्वं ॥१२॥ शब्दार्थसहसा-रहस्स-दारे-सह- हों, उन्हें देखकर मनमाना अनुसाभ्याख्यान करनेसे, रहोऽ- . मान लगा लेना। स्वरदारमन्त्रभ्याख्यान करनेसे, स्वदारमन्त्र- भेद-अपनी स्त्रीकी गुप्त बात भेद करनेसे। बाहर प्रकाशित करनो। सहसाऽभ्याख्यान-बिना मोसुवएसे-मिथ्या उपदेश विचारे किसीको दूषित कहना । ___ अथवा झूठी सलाह देनेसे । रहोऽभ्याख्यान-कोई मनुष्य रहस् अर्थात् एकान्तमें गुप्त बातें करते । कूडलेहे-झूठी बातें लिखनेसे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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