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अ-तथा ।
जे -जो ।
दोसा- दोष |
अट्ठा - स्वयंके लिये, अपने लिये
I
य-और
मूल
१२५
अर्थ- सङ्कलना
छह कायके जीवोंको विराधना हो ऐसी प्रवृत्ति करते हुए तथा अपने लिये, दूसरोंके लिये और साथ ही दोनोंके लिये राँधते हुए, रंधाते हुए जो दोष हुए हों, उनको मैं निन्दा करता हूँ ॥ ७ ॥
शब्दार्थ
परट्ठा - दूसरोंके लिये । उभयट्ठा - दोनोंके लिये । चेव और साथ ही । तं निदे- उनकी
मैं
करता हूँ ।
पंचण्हमणुव्वयाणं, गुणव्वयाणं च तिण्हमइआरे । सिक्खाणं च चउण्हं, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ॥ ८॥
पंचहमणुव्वयाणं- पाँच अणुव्रतोंमें।
स्थूल - प्राणातिपात विरमणव्रत
आदि पाँच व्रत अणुव्रत कहलाते हैं । गुणव्वयाणं - गुणव्रतोंमें ।
आदि
दिक्- परिणाम - व्रत तीन व्रत गुणव्रत कहलाते हैं । च - और ।
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निन्दा
तिन्हं तीन ।
अइआरे - अतिचारोंको । सिक्खाणं-शिक्षाव्रतोंमें ।
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सामयिक - व्रत व्रत शिक्षाव्रत कहलाते हैं ।
च - और ।
चउण्हं-चार |
पडिक्कमे देसिअं सव्वं - पूर्ववत् ०
आदि चार
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