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संका कंख विगिच्छा, पसंस तह संथवो कुलिंगीसु ।
सम्मत्तस्स इआरे, पडिक्कमे देसि सव्वं ॥६॥ शब्दार्थसंका-वीतरागके वचनोंमें शङ्का । | संथवो-संस्तव । कंख-अन्यमतकी इच्छा, कांक्षा। कुलिंगीसु-कुलिङ्गियोंके बारेमें । विगिच्छा-धर्म के फलमें सन्देह
पृथक् पृथक् वेश पहनकर होना अथवा साधु-साध्वीके धर्मके बहाने जो लोगोंको मलिन वस्त्र देखकर दुर्भाव ठगते हैं वे कुलिङ्गी कहाते हैं । (दुगंछा) होना, विचिकित्सा । सम्मत्तस्स इआरे-सम्यक्त्वके पसंस-प्रशंसा, कुलिङ्गी प्रशंसा । अतिचारोंसे । तह-तथा ।
पडिक्कमे देसि सव्वं-पूर्ववत्० अर्थ-सङ्कलना____ सम्यक्त्वके पालनमें शङ्का, कांक्षा, विचिकित्सा, कुलिङ्गी-प्रशंसा तथा कुलिङ्गी-संस्तवद्वारा दिवस-सम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ।। ६ ।। मूल
छक्काय-समारंभे, पयणे अ पयावणे अ जे दोसा ।
अत्तट्ठा य परट्ठा, उभयट्ठा चेव तं निंदे ॥७॥ शब्दार्थछक्काय-समारंभे-छहकायके । पयणे-राँधते हुए । जीवोंकी-विराधना हो ऐसी अ-और। प्रवृत्ति करते हुए।
पयावणे-रँधाते हुए।
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