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द्वेषसे, जो (अशुभ-कर्म) बँधा हो, उसकी मैं निन्दा करता हूँ, उसकी मैं ग करता हूँ ॥ ४ ॥ *
मूल
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आगमणे निग्गमणे, ठाणे चकमणे अणाभोगे । अभिओगे अ निओगे, पक्किमे देसिअं सव्वं ॥ ५ ॥
शब्दार्थ
आगमणे-आने में | निग्गमणे-जाने में ।
ठाणे - एक स्थानपर खड़े रहने में ! चकमणे - वारंवार चलने में अथवा
इधर उधर फिरने में । अणाभोगे - अनुपयोग में, उपयोग न होनेसे ।
अभिओगे - अभिग्रहसे,
होनेसे ।
अ- और ।
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निओगे - नौकरी-आदिके कारण । पक्किमे देसिअं सव्वं - पूर्ववत् ०
अर्थ- सङ्कलना
उपयोग नहीं रहने से, दबाव होनेसे अथवा नौकरी-आदिके कारण आने में, जानेमें, एक स्थान पर खड़े रहने में और बारंबार चलने में अथवा इधर उधर फिरने में दिवस सम्बन्धी जो ( अशुभ कर्म) बँधे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ॥ ५ ॥
दबाव
इन्द्रिय, कषाय, योग तथा विभागों के लिये देखो, प्रबोधटीका भाग योग उपलक्षणसे लिये जाते हैं ।
राग-द्वेषके प्रशस्त और अप्रशस्त
२, पृ.
१८२ । यहाँ तीन
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