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बहविहे-अनेक प्रकारके। । पडिक्कमे-प्रतिक्रमण करता है, अ-और।
निवृत्त होता हूँ। आरंभे-आरम्भ । कारावणे-दूसरेसे करवाते हुए । ।
देसिअं-दिवस-सम्बन्धी। अ-और।
सव्वं-छोटे-बड़े जो अतिचार लगे कारणे-स्वयं करते हुए।
हों उन सबसे ।
अर्थ-सङ्कलना
बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रहके कारण, पापमय अनेक प्रकारके आरम्भ दूसरेसे करवाते हुए और स्वयं करते हुए, दिवस-सम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ॥ ३॥
जं बद्धमिदिएहि, चउहिं कसाएहिं अप्पसत्थेहिं ।
रागेण व दोसेण व, तं निंदे तं च गरिहामि ॥ ४ ॥ शब्दार्थजं बद्ध-जो बँधा हो ।
आसक्ति है। इंदिएहि-इन्द्रियोंसे।
व-अथवा । चरहिं कसाहि-चार कषायोंसे । दोसेण-द्वेषसे । अप्पसत्थेहि-अप्रशस्त ।
द्वेषका लक्षण अप्रीति है। रागेण-रागसे।
व-अथवा। रागका लक्षण प्रीति अथवा तं निदे तं च गरिहामि-पूर्ववत् अर्थ-सङ्कलना
अप्रशस्त इन्द्रियों, चार कषायों, ( तीन योगों) तथा राग और
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