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________________ १२१ नाणे-ज्ञानकी आरायनाके विषयमें।। बायरो-शीघ्र ध्यानमें आये ऐसा, तह-उसी प्रकार। बड़ा। दसणे-दर्शनकी आराधनाके | वा-अथवा । विषयमें । तं-उसकी। चरित्ते-चारित्रकी आराधनाके निदे-आत्मसाक्षीसे बुरा मानता हूँ, विषयमें। निन्दा करता हूँ। अ- और। तं-उसको। सुहमो-शीघ्र ध्यानमें न आये | च-और। ऐसा, छोटा। गरिहामि-गुरुको साक्षीमें प्रकट व-अथवा । करता हूँ, गर्दा करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना मुझे व्रतोंके विषयमें तथा ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी आराधनाके विषयमें छोटा अथवा बड़ा, जो अतिचार लगा हो, उसकी मैं निन्दा करता हूँ, उसकी मैं गर्दा करता हूँ॥ २॥ दुविहे परिग्गहम्मी, सावज्जे बहुविहे अ आरंभे । कारावणे अ करणे, पडिक्कमे देसि सव्वं ॥३॥ शब्दार्थ दुविहे-दो प्रकारके, बाह्य और ___ अभ्यन्तर ये दो प्रकारके । परिग्गहम्मी-परिग्रहके विषयमें, परिग्रहके कारण। जो वस्तु ममत्वसे ग्रहण की जाय वह परिग्रह । धन, धान्य आदि परिग्रह कहलाते हैं । सावज्जे-पापमय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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