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३२ सावग-पडिक्कमरण-सुत्तं
[ 'वंदित्तु'-सूत्र]
मूल
[ गाहा ] वंदित्त सव्वसिद्धे, धम्मायरिए अ सव्वसाहू अ ।
इच्छामि पडिकमिउं, सावग-धम्माइआरस्स ॥१॥ शब्दार्थवंदित्तु-वन्दन करके।
अ-और सम्वसिद्धे-सर्व सिद्ध भगवन्तोंको। इच्छामि-चाहता हूँ। धम्मायरिए-धर्माचार्योंको। पडिक्कमिउं-प्रतिक्रमण करनेको । अ-और।
सावग-धम्माइआरस्स-श्रावकसव्वासाहू-सब साधुओंको। धर्म में लगे हुए अतिचारोंका। अर्थ-सङ्कलना
सर्व सिद्ध भगवन्तों, (सर्व) धर्माचार्यों और सर्व साधुओंको वन्दन करके श्रावक-धर्म में लगे हुए अतिचारोंका प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ॥१॥ मूल
जो मे वयाइआरो, नाणे तहे दंसणे चरित्ते अ।
सुहुमो व बायरो वा, तं निंदे तं च गरिहामि ॥२॥ शब्दार्थजो-जो।
वयाइआरो-व्रतोंके विषय में अतिमे-मुझे।
चार लगा हो।
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