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इन अठारह पापस्थानकोंमेंसे मेरे जीवने जो कोई पाप सेवन किया हो, सेवन कराया हो, सेवन करते हुएके प्रति अनुमोदन किया हो; उन सबका मन, वचन और कायासे मिच्छामि दुक्कडं ॥
शब्दार्थ
प्राणातिपात - हिंसा । मृषावाद - झूठ बोलना ।
अदत्तादान - चोरी ।
मैथुन - अब्रह्म ।
परिग्रह - धन-दौलतपर मोह । क्रोध - गुस्सा, कोप |
मान - गर्व, मद ।
माया - छल, कपट ।
लोभ - तृष्णा ।
राग - प्रेम |
द्वेष- परस्पर ईर्ष्या करना |
अर्थ-सङ्कलना
स्पष्ट है |
सूत्र - परिचय -
कलह-क्लेश ।
अभ्याख्यान - दोषारोपण, व्यर्थ ही किसी पर झूठा दोष आरो
पण करना ।
पैशुन्य - चुगली, पीठ पीछे सच्चेझूठे दोष प्रकाशित करना । रति - अरति - हर्ष और उद्वेग । पर- परिवाद - दूसरेको बुरा कहना
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और अपनी प्रशंसा करना । माया - मृषावाद - प्रवञ्चना, ठगाई । मिथ्यात्व - शल्य - मिथ्यात्व दोष |
यह सूत्र अठारह पापस्थानकोंमेंसे किसो भो पापस्थानकका सेवन किया हो, उसका मिथ्या दुष्कृत लेनेके लिये बोला जाता है ।
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