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________________ अर्थ-सङ्कलना पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतों में दिवस - सम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ॥ ८ ॥ मूल - १२६ पढमे अणुव्वयम्मी, धूलग - पाणाइवाय - विरईओ । आयरियमप्पसत्थे, इत्थ पमाय - प्पसंगेणं ॥ ९॥ शब्दार्थ पढमे अणुव्वयम्मी- प्रथम अणुव्रतके विषय में । थूलग - पाणाइवाय - विरईओ -स्थूल प्राणातिपातकी विरतिसे दूर हो ऐसा, पालन करना । अर्थ- सङ्कलना स्थूल - प्राणातिपात - विरमण - अप्पसत्थे व्रतमें अतिचार लगे ऐसा । थूलग — स्थूल, कुछ अंशोंमें पाणाइवाय- प्राणका वियोग करना, हिंसा । विरइ - विरमणव्रत, दूर रहना । आयरिय - जो कोई आचरण किया हो । - अप्रशस्त-भावका उदय Jain Education International होनेसे | इत्थ - यहाँ । पमाय - प्प संगेणं - प्रमादके प्रसङ्गसे अब प्रथम अणुव्रत के विषयमें ( लगे हुए अतिचारोंका प्रतिक्रमण किया जाता है ।) यहाँ प्रमादके प्रसङ्गसे अथवा ( क्रोधादि ) अप्रशस्त भावका उदय होनेसे स्थूल - प्राणातिपात - विरमण - व्रतमें अतिचार लगे ऐसा जो कोई आचरण किया हो, उससे मैं निवृत्त होता हूँ ॥ ९ ॥ मूल वह-बंध- छविच्छेए, अइभारे भत्त - पाण- वुच्छेए । पढम - वयस्स इआरे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ॥१०॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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