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________________ मूल ११६ य - ललाटको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । ज - अनुदात्त-स्वरसे बोला जाता है और उसी समय गुरु-चरणकी स्थापनाको दोनों हाथोंसे स्पर्श किया जाता है । त्ता-स्वरित स्वर से बोला जाता है और उस समय चरण स्थापना से उठाये हुए हाथ रजोहरण और ललाटके बीच में चौड़े करनेमें आते हैं । भे - उदात्त स्वर से बोला जाता है और उस समय दृष्टि गुरुके समक्ष रखकर दोनों हाथ ललाटपर लगाये जाते हैं । ज - अनुदात्त - स्वरसे, चरणस्थापनाको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । च - स्वरित - स्वरसे, मध्य में आते हुए हाथ चौड़े करके बोला जाता है । णि - उदात्त - स्वरसे, ललाटको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । ज्ज - अनुदात्त - स्वरसे, चरण-स्थापनाको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । च - स्वरित - स्वरसे, मध्यमें आते हुए हाथ चौड़े करके बोला जाता है । भे— उदात्त - स्वरसे, ललाटको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । ? ३० जीवहिंसा - प्रालोयणा [ 'सात लाख ' -सूत्र ] सात लाख पृथ्वीकाय, सात लाख अप्काय, सात लाख तेजकाय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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