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________________ ११५ क्रमणके कारण हुई आशातनासे हुआ हो, उनसे हे क्षमाश्रमण ! मैं वापस लौटता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, उसकी गर्हा करता हूँ और इस अशुभ - योग में प्रवृत्त अपनी आत्माका त्याग करता हूँ । सूत्र-परिचय गुरुको बारह आवर्तपूर्वक वन्दन करनेके लिये यह सूत्र बोला जाता है । इसमें 'इच्छामि खमासमणो वंदिउ जावणिज्जाए निसीहिआए' इन पदोंसे वन्दनकी इच्छाका निवेदन किया जाता है, अतः इसको 'इच्छानिवेदन-स्थान' कहते हैं । 'अणुजाणह' से 'किलामी' पर्यन्तके पदों अनुज्ञा माँगी जाती है, अतः इसको 'अनुज्ञापन -स्थान' कहते हैं । 'अप्प किलंताणं' से 'वइक्कंतो' तकके पदोंसे 'अव्याबाध- स्थिति पूछी जाती है, अतः इसको 'अन्याबाध - पृच्छा स्थान' कहते हैं । 'जत्ता भे ?' इन दो पदोंसे संयम-यात्राकी पृच्छा की जाती है, अतः इसको 'संयमयात्रा - पृच्छा-स्थान' कहते हैं । 'जवणिज्जं च भे ?' इन तीन पदोंसे यापनाको पृच्छा की जाती है, अतः इसको 'यापनापृच्छा-स्थान' कहते हैं । और 'खामेसि खमासमणो' से 'वोसिरामि' तकके पदोंसे अपराधकी क्षमा माँगी जाती है, अतः इसको 'अपराधक्षमापनस्थान' कहते हैं । इस सूत्र में 'अहोकायं काय -- ' ' जत्ता भे ?' और 'जवणिज्जं च भे ?' ये शब्द विशिष्ट रीतिसे बोले जाते हैं, वे इस प्रकार - अ - रजोहरणको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । हो - ललाटको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । का - रजोहरणको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । यं - ललाटको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । का -- रजोहरणको स्पर्श करते हुए बोला जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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