________________
११७
सात लाख वायुकाय, दस लाख प्रत्येक-वनस्पतिकाय, चौदह लाख साधारण-वनस्पतिकाय, दो लाख दो इन्द्रिय, दो लाख तीन इन्द्रिय, दो लाख चार इन्द्रिय, चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाख तियञ्च-पञ्चेन्द्रिय,
चौदह लाख मनुष्य, इस प्रकार चौरासी लाख जीवयोनियोंमेंसे किसी जीवका हनन किया हो, हनन कराया हो, हनन करते हुएका अनुमोदन किया हो, वह सब मन, वचन और कायासे मिच्छा मि दुक्कडं ॥ शब्दार्थ और अर्थ-सङ्कलना
स्पष्ट है। सूत्र-परिचय___ यह सूत्र चौरासी लाख जीवयोनियोंके अन्तर्गत किसी भी जीवकी हिंसा की हो, उसका मिथ्या दुष्कृत लेनेके लिए बोला जाता है।
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org