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१०४ अर्थ-सङ्कलना. ज्ञानाचार आठ प्रकारका है :-(१) काल, (२) विनय, (३) बहुमान, (४) उपधान, (५) अनिवता, (६) व्यञ्जन, (७) अर्थ और (८) तदुभय ॥२॥ मूलनिस्संकिअ निकंखिअ, निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी अ ।
उववूह--थिरीकरणे, वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ ॥३॥ शब्दार्थनिस्संकिस-किसी प्रकारकी शङ्का । अ-और । __ न करना, निःशङ्कता। निक्कंखिअ-किसी प्रकारकी इच्छा | उववूह - थिरीकरणे - उपबृंहणा __ न करना, निष्कांक्षता ।
और स्थिरीकरण । निव्वितिगिच्छा-मतिविभ्रमसे ।
वच्छल्ल-पभावणे-वात्सल्य और रहित अवस्था, निर्विचिकित्सा।
प्रभावना। अमूढदिट्टी-जिस दृष्टिमें मूढता
न हो, अमूढदृष्टिता। | अठ्ठ-आठ। अर्थ-सङ्कलना___ दर्शनाचारके आठ प्रकार हैं :-(१) निःशङ्कता, (२) निष्काङ्क्षता, (३) निर्विचिकित्सा, (४) अमूढदृष्टिता (५) उपबृंहणा, (६) स्थिरीकरण, (७) वात्सल्य और (८) प्रभावना ।।३।। मूलपणिहाण-जोग-जुत्तो, पंचहिं समिईहिं तीहिं गुत्तीहि । एस चरित्तायारो, अट्ठविहो होइ नायव्वो ॥४॥
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