________________
१०३
शब्दार्थनाणम्मि-ज्ञानके विषयमें । वीरयम्मि-वीर्यके विषयमें । दसणम्मि -दर्शनके विषयमें । आयरणं-आचरण करना । अ-और।
आयारो-आचार। चरणम्मि-चारित्रके विषयमें । इअ-यह। तवम्मि-तपके विषयमें । पंचहा-पाँच प्रकारका। तह य-और।
भणिओ-कहा गया है। अर्थ-संकलना
ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्यके विषयमें जो आचरण करना आचार कहा गया है । यह आचार पाँच प्रकारका है :-(१) ज्ञानाचार, (२) दर्शनाचार, (३) चारित्राचार, (४) तपाचार और (५) वीर्याचार ॥१॥ मूल
काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तह अनिण्हवणे ।
वंजण-अत्थ-तदुभये, अट्टविहो नाणमायारो ॥२॥ शब्दार्थकाले-कालके विषयमें।
सिद्धान्त आदिके विषयमें अपविणए-विनयके विषयमें।
लाप करना। बहुमाणे-बहुमानके विषयमें ।
वंजण-अत्थ-तदुभये -व्यञ्जन, . उवहाणे-उपधानके विषयमें ।
अर्थ और तदुभयके विषयमें। . तह-तथा । अनिण्हवणे-अनिह्नवताके विषयमें। अट्टविहो-आठ प्रकारका । . अनिण्हवण-गुरु, ज्ञान और । नाणमायारो-ज्ञानाचार ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org