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२६ पडिक्कमण-ठवणा--सुत्तं
[ 'सव्वस्स वि'-सूत्र ] मूल___इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! देवसिअ-पडिक्कमणे ठाउं ?* इच्छं।
सव्वस्स वि देवसिअ दुचिंतिअ दुब्भासिअ दुच्चिट्ठिअ मिच्छा मि दुक्कडं ॥
शब्दार्थ
इच्छाकारेण-स्वेच्छासे । देवसिअ-दिवस सम्बन्धी, दिनके संदिसह-आज्ञा प्रदान करो। मध्यमें। भगवन् ! हे भगवन् ! दुच्चिंतिअ-दुष्ट-चिन्तनदेवसिअ-पडिक्कमणे-दैवसिक
सम्बन्धी। , प्रतिक्रमणमें।
दुब्भासिअ-दुष्ट-भाषण-- ठाउं-स्थिर होनेकी।
सम्बन्धी। इच्छं-मैं भगवन्तके इस वचनको दुच्चिट्टिअ-दुष्ट-चेष्टाचाहता हूँ।
___ सम्बन्धी। सव्वस्स-सबका।
| मिच्छा मि दुक्कडं-मेरा दुष्टकृत वि-भी।
मिथ्या हो। - यहाँ गुरु आज्ञा देते हैं कि 'ठाएह'-प्रतिक्रमणमें स्थिर बनो। तब शिष्य कहे कि
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