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________________ प्रश्न-तीसरी वाचना कब हुई ? उत्तर-तीसरी वाचना सम्भवतः इसी समयमें सौराष्ट्र के वल्लभीपुर नगर में स्थविर नागार्जुनकी प्रधानतामें हुई। इतना स्मरण रहे कि प्राचीन कालमें जैनसाधु सूत्रोंको गुरुमुखसे धारण करते थे और उनकी बारम्बार आवृत्ति करके स्मरण रखते थे, परन्तु इसके लिये कोई पुस्तक-पत्रादिका उपयोग नहीं करते थे। प्रश्न-तो जैन-सूत्र कब लिखे गये ? उत्तर-वीरनिर्वाणके पश्चात् ९८० वें वर्ष में देवर्धिगणि क्षमाश्रमणने वल्लभी पुरमें श्रमणसङ्घको एकत्रित करके जैन-सूत्र लिखा लेनेका निर्णय किया, तबसे जैन-सूत्र लिखाये गये और उनको प्रतियाँ अलग अलग भण्डारोंमें सुरक्षित रहने लगीं। इन भण्डारोंके प्रतापसे ही वर्तमान द्वादशाङ्गी हम तक पहुँची है । २३ सिद्ध-थुई ['सिद्धाणं बुद्धाण'-सूत्र] [ गाहा ] सिद्धाणं बुद्धाणं, पार--गयाणं परंपर-गयाणं । लोअग्गमुवगयाणं, नमो सया सव्व--सिद्धाणं ॥१॥ जो देवाण वि देवो, जं देवा पंजली नमसंति । तं देवदेव-महिअं, सिरसा वंदे महावीरं ॥२॥ इको वि नमुक्कारो, जिणवर-वसहस्स वद्धमाणस्स। संसार-सागराओ, तारेइ नरं व ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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