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प्रश्न-क्या अभी द्वादशाङ्गी सम्पूर्ण मिलती है ? उत्तर-नहीं, अभी द्वादशाङ्गीके पहले ग्यारह शास्त्र मिलते हैं किन्तु . बारहवाँ दिट्ठिवाय नामका शास्त्र नहीं मिलता। क्योंकि उसका
दीर्घकाल-पूर्व ही विच्छेद हो गया है। प्रश्न-अभी जो द्वादशाङ्गी मिलती है, वह कौनसे गणधर भगवान्ने
रची है ? उत्तर-सुधर्मास्वामीने, परन्तु इसकी तीन वाचनाएँ हुई हैं। प्रश्न-वाचना किसे कहते हैं ? उत्तर-आचार्य तथा गीतार्थ सम्मिलित होकर जो शास्त्रका सङ्ग्रह
करते हैं उसे वाचना कहते हैं । प्रश्न-पहली वाचना कब हुई ? उत्तर–पहली वाचना श्रीमहावीरस्वामीके छठे पाट पर आये हुये श्रुत
केवली श्रीभद्रबाहुस्वामीके समयमें हुई। उस समय बारह वर्षका दुष्काल पड़ा था, इसलिये साधुगण पाटलीपुत्र और उसके आसपासका प्रदेश छोड़कर दूर-दूर चले गये थे और उनमेंसे बहुतसे अनशन करके कालधर्मको प्राप्त हो गये थे। जो साधु शेष रहे थे, वे शनैः शनैः पाटलीपुत्र वापस आये, किन्तु दुष्कालमें शास्त्रोंका स्वाध्याय उचितरूपमें नहीं होनेसे कुछ सूत्र सर्वथा विस्मृत हो गये, जिससे पाटलीपुत्रमें श्रमणसङ्घ एकत्रित हुआ और सूत्रोंकी वाचना
हुई थी। प्रश्न-दूसरी वाचना कब हुई ? उत्तर-विक्रमके द्वितीय शतकमें पुनः बारह वर्षका दुष्काल पड़ा, जिससे
श्रुत पुनः अव्यवस्थित हो गया, इसलिये वि. सं. १५३ में आर्यस्कन्दिलाचार्यने मथुरामें श्रमणसङ्घको एकत्रित कर दूसरी वाचना की।
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