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________________ वृद्धिको प्राप्त हो और विजयको परम्परासे चरित्र धर्म भी नित्य वृद्धिको प्राप्त हो ॥ ४॥ श्रुत-भगवानकी आराधनाके निमित्त मैं कायोत्सर्ग करता हूँ। 'वंदण-वत्तियाए०' आदि । सूत्र-परिचय___ इस सूत्रमें श्रुतधर्म-श्रुतज्ञानकी स्तुति की गयी है, इसलिये वह 'सुयधम्म-थुई' कहाती है । इसका दूसरा नाम 'श्रुतस्तव' है । श्रुतज्ञान (द्वादशाङ्गी) प्रश्न-श्रुतज्ञान किसे कहते हैं ? . उत्तर-तीर्थङ्कर देवोंके पासमें गणधर भगवान्ने सुनकर जो ज्ञान प्राप्त किया हो उसे श्रुतज्ञान कहते हैं । श्रुत अर्थात् सुना हुआ। प्रश्न-गणधर भगवान् श्रुतज्ञान प्राप्त करके क्या करते हैं ? उत्तर-~-शास्त्रोंकी रचना करते हैं । प्रश्न-कितने शास्त्रोंकी रचना करते हैं ? उत्तर-बारह शास्त्रोंकी रचना करते हैं । इस प्रत्येक शास्त्रको अङ्ग कहा ___ जाता है, अर्थात् बारह शास्त्रोंके समूहको द्वादशाङ्गी कहते हैं । प्रश्न-द्वादशाङ्गीमें कौनसे बारह शास्त्र होते हैं ? उत्तर-(१) आचार, (२) सुयगड, (३) ठाण, (४) समवाय, (५) विवा हपण्णत्ति, (६) नायाधम्मकहा, (७) उवासगदसा, (८) अंतगडदसा, (९) अणुत्तरोववाइयदसा, (१०) पण्हावागरण, (११) विवागसुय और (१२) दिट्ठिवाय ( दृष्टिवाद )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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