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________________ धम्मो -धर्म, जैनधर्म । वड्ढउ-वृद्धिको प्राप्त हो । वड्ढउ-वृद्धिको प्राप्त हो । सुअस्स-भगवओ- श्रुत- भगवासासओ-शाश्वत । न्की ( आराधनाके निमित्त )। विजयओ-विजयसे, विजयकी। | करेमि काउस्सग्गं- कायोत्सर्ग धम्मुत्तरं-धर्मोत्तर, चारित्रधर्म। । करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना___ अर्ध पुष्करवरद्वीप, धातकीखण्ड और जम्बूद्वीप ( मिलकर ढाई द्वीप ) में आये हुए भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्रोंमें ( श्रुत ) धर्मकी आदि करनेवालोंको मैं नमस्कार करता हूँ॥ १॥ अज्ञानरूपी अन्धकारके समूहका नाश करनेवाले, देव-समूह तथा राजाओंके समूहसे पूजित और मोहजालको बिलकुल तोड़नेवाले, मर्यादायुक्त ( श्रुतधर्म ) को मैं वन्दन करता हूँ॥२॥ जन्म, जरा, मृत्यु तथा शोकका नाश करनेवाला, पूर्ण कल्याण और बड़े सुखको देनेवाला, देवेन्द्रों, दानवेन्द्रों और नरेन्द्रोंके समूहसे पूजित ऐसे श्रुतधर्मका सार प्राप्तकरके कौन मनुष्य धर्मकी आराधना करनेमें प्रमाद करे ? ॥ ३ ॥ हे मनुष्यों ! ( नय-निक्षेपसे सिद्ध ) ऐसे जैनदर्शनको मैं आदरपूर्वक नमस्कार करता हूँ जो देव, नागकुमार, सुपर्णकुमार, किन्नर, आदिसे सच्चे भावपूर्वक पूजित है, तथा जो संयम-मार्गकी सदा वृद्धि करनेवाला है और जिसमें सकल पदार्थ तथा तीनों लोकके मनुष्य एवं (सुर ) असुरादिकका आधाररूप-जगत् वर्णित है । ऐसा (संयम-पोषक और ज्ञान-समृद्ध दर्शन द्वारा प्रवृत्त ) शाश्वत जैनधर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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