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पप्फोडिय-मोहजालस्स- | णमो-मैं नमस्कार करता हूँ। मोहजालको बिलकुल तोड़ने जिणमए-जिनमतको, जैनदर्शनको। वालेको।
नंदी-वृद्धि। जाई-जरा-मरण-सोग-पणा- | सया-सदा। सणस्स-जन्म, जरा, मृत्यु | संजमे-संयममें, संयम-मार्गकी। तथा शोकका नाश करनेवाला। देवं-नाग-सुवन्न-किन्नर-गणजाई-जन्म । जरा-वृद्धावस्था । स्सन्भूअ-भावच्चिए
मरण-मृत्यु । प्राण-नाश । देव, नागकुमार, सुपर्णकुमार, सोग-मानसिक दुःख, सम- किन्नर आदिसे सच्चे भाववेदना ।
पूर्वक पूजित। कल्लाण - पुक्खल - विसाल - देव-वैमानिक देव । नाग
सुहावहस्स-पूर्ण कल्याण और नागकुमार । यह भवनपति बड़े सुखको देनेवाला।
देवका एक प्रकार है। कल्लाण - आत्माका भला । सुवन्न-सुपर्णकुमार । यह
पुक्खल - पुष्कल, बहुत । भी भवनपति देवका एक विसाल-बड़ा।
प्रकार है । किन्नर-यह को-कौन ? कौन मनुष्य ?
व्यन्तर जातिके देवका देव-दाणव - नरिंद - गणच्चि
एक प्रकार है। सब्भूअ
भाव-सच्चा भाव, हृदयका यस्स-देवेन्द्रों, दानवेन्द्रों और
सच्चा उल्लास । अच्चिअनरेन्द्रोंके समूहसे पूजित ।
पूजित । धम्मस्स-धर्मका, श्रुतधर्मका। लोगो-लोक, सकल पदार्थ । सारमूवलब्भ-सार प्राप्त करके ।। जत्थ-जहाँ । करे-करे।
पइटिओ-प्रतिष्ठित है, वर्णित है । पमाय-प्रमाद ।
जगमिणं-यह जगत् । सिद्ध-सिद्ध।
तेलुक्क-मच्चासुरं-तीनों लोकके भो!-हे सुज्ञजनों!, हे मनुष्यों ! । मनुष्य तथा ( सुर )-असुरा- . पयओ-प्रयत्नपूर्वक, आदरपूर्वक ।। दिकको आधाररूप ।
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