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[ वसन्ततिलका ] जाई - जरा - मरण - सोग पणासणस्स, कल्लाण- पुक्खल-विसाल - सुहावहस्स । को देव-दानव - नरिंद - गणच्चियस्स, धम्मस्स सारमुवलब्भ करे पमायं ॥ ३ ॥ [ शार्दूलविक्रीडित]
सिद्धे भो ! पयओ णमो जिणमए नंदी सया संजमे, देवं - नाग - सुवन्न - किन्नर - गण - स्सम्भूअ - भावच्चिए । लोगो जत्थ पट्टिओ जगमिणं तेलुक्क - मच्चासुरं, धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ || ४ || सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं, वंदण-वत्तियाए० ॥
शब्दार्थ—
पुक्खरवर - दीवड्ढे - अर्ध पुष्करवर | तम- तिमिर - पडल- विद्वंसणस्स - द्वीप | अज्ञानरूपी अन्धकारके समूह - का नाश करनेवालोंको ।
धायइखंडे - धातकीखण्ड में |
- और जंबुदीवे - जम्बूद्वीपमें |
य-तथा ।
भर हेरवय - विदेहे - भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्रोंमें । धम्मा गरे- धर्मकी आदि करनेवालोंको ।
नम॑सामि - मैं नमस्कार करता हूँ ।
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सुरगण - नरिंद- महियस्स - देवसमूह तथा राजाओंके समूहसे पूजित |
सीमाधरस्स - सीमा धारण करनेवालेको, मर्यादायुक्त । सीमा - मर्यादा |
वंदे - मैं वन्दन करता हूँ ।
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