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________________ - सूत्र-परिचय इस सूत्रमें चार स्तुतियाँ हैं । उनमें पहली स्तुति महावीर स्वामीकी है, दूसरी स्तुति सर्व जिनोंकी है, तीसरी स्तुति श्रुतसागर अर्थात् द्वादशाङ्गकी है और चौथी स्तुति श्रुतदेवीकी है। ____ इनमेंसे पूर्वको तीन स्तुतियाँ अनेक शास्त्रोंके निर्माता श्रीहरिभद्रसूरिने बनायी हैं और चौथी स्तुतिका केवल पहला चरण ही उन्होंने बनाया है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने १४४४ ग्रन्थ बनानेकी प्रतिज्ञा की थी, उनमें यह रचना अन्तिम थी और उन्होंने इसका पहला चरण बनाया कि उनकी वाणी बन्द हो गयी, अतः शेष तीन चरण उनकी इच्छानुसार श्रीसङ्घने पूर्ण किये हैं और इसीसे ये तीनों चरण आज भी श्रीसङ्घद्वारा उच्चस्वरसे बोले जाते हैं। इस स्तुतिको संस्कृत-भाषाकी रचना भी कह सकते हैं और प्राकृतभाषाकी रचना भी, क्यों कि इसमें व्यवहृत-शब्द दोनों भाषाओंमें समान हैं। २२ सुयधम्म-थुई [ 'पुक्खरवर '-सूत्र ] [ गाहा ] पुक्खरवर-दीवड्ढे, धायइखंडे य जंबुदीवे य । भरहेरवय-विदेहे, धम्माइगरे नमंसामि ।। १ ॥ तम-तिमिर-पडल-विद्धंसणस्स सुरगण-नरिंद-महियस्स । सीमाधरस्स वंदे, पप्फोडिय-मोहजालस्स ॥ २ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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