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________________ [ ३२ वाचनानुयायी श्रमणसंघोनी सभामां एक गंधर्व वादिबेताल शान्तिसूरि उपस्थित हता जेमणे वालभ्य संघना प्रमुग्व कालकाचार्यनी संघकार्यमां सहायता करी हती अने बन्ने वाचनानुगत आगमोनो समन्वय कराव्यो हतो, अमारी मान्यता प्रमाणे ते गंधर्व वादिवेताल अने अभिषेकविधिकार वादिवेताल शान्तिसरि अभिन्न होवा जोइये, केटलाक विद्वानो उत्तराध्ययननी पाइयटीकाकार शान्तिसूरिने 'वादिवेताल' माने छे जे बराबर नथी पाइयटीकाकार शान्तिसूरि थारापद्रगच्छीय हता अने ते अग्यारमा सैकाना विद्वान् हता अने वादिवेत ल शान्तिसूरिथी अर्वाचीन हता." " जिनस्नात्रविधि अने अहंदभिषेकविधिनी समकालीनताश्री जैन साहित्य विकास मंडल तरफथी जेना प्रकाशननी जाहेरात थइ हती ते 'जिनस्नात्रविधि'नी वादिवेतालीय अभिषेकविधिनी साथे तुलना करी जोतां जणायु के उक्त बंने विधिओ एक बीजीनी असरथी मुक्त छे, वादिवेताले 'स्नात्रविधि' के स्नात्रविधिकार आचार्य श्रीजीवदेवे ' अभिषेकविधि' जोइ होत तो तेनी थोडी पण असर एक बीजानी कृतिमा आव्या विना रहेत नहिं. आथी जणाय छे के उक्त बन्ने कृतिओ लगभग समकालीन होवी जोइये.) ___ अभिषेकविधिना मूलनी कोपी तथा अभिषेकविधिनी पंजिकानुं पुस्तक विद्वान् मुनिवर्य श्रीपुण्यविजयजीना सौजन्यथी मलतां अमे कलिकामा ए विधि आपवा समर्थ थया छीये ए वातनो अमारे स्वीकार करवो जोइथे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001516
Book TitleJina Snatra Vidhi
Original Sutra AuthorJivdevsuri, Vadivetalsuri
AuthorLalchandra Pandit
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1965
Total Pages214
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
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