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[31] अमे आ विधिने भाषान्तरित करीने ज नहिं पण भणावी शकाय ए रीते प्रक्रियाबद्ध विधिनी साथे आपी छे.
आ अभिषेकविधिनो रचनाकाल कई शताब्दी छे ए निश्चितपणे कहेवं मुश्केल छे छतां एटलुं तो निर्विवादपणे कही शकाय के आ कृति नवमा सैका पहेलांनी छे, केम के शीलाचार्यापरनामधारी तत्त्वादित्यनी एना उपर संस्कृत पंजिका मले छे."
પંજિકાના પ્રારંભનાં બે પદ્યો દર્શાવ્યા પછી, ત્યાં તેના અંતનો ઉલ્લેખ સુચિત કર્યો છે—
" इति श्रीशान्तिवादिवेतालीये भगवदह द]भिषेकविधौ तत्त्वादित्यकृतायां पञ्जिकायां पंचमं पर्व ॥ ९९ ॥"
- [अहिं पृ. १२२ मा विस ताडपत्रीय प्रतिमा ( ५.] એ પ્રસ્તાવનામાં આગળ જણાવ્યું છે કે – __“पंजिकाकारनी लेखन शैलि ज कही आपे छे के एओ ८-९मा(आठमा नवमा) सैका पछीना नथी, पञ्जिकाना समाप्ति. लेख उपरथी जणाय छे के अर्हदभिषेकविधिना रचयिता श्रीशान्ति. सरि 'वादिवेताल'ना नामथी अधिक प्रसिद्ध हता, प्रत्येक पर्वनी समाप्ति " इति शान्तिबादिवेतालीये" [तपत्रीय प्रतिमा आव। ५४ नया ] आ शब्दोनी साथे करवानो ए ज मतलब छे."
વિશેષમાં ત્યાં તેમની માન્યતા જણાવી છે કે – i- "विक्रमना छठाथी पंदरमा सैका सुधीनां हजार वर्षमा दशेक शान्तिसूरिनां नामो उपलब्ध थयां छे तेमां अमारी मान्यतानुसार आ वादिवेताल शान्तिसूरि सर्व प्रथम होइ शके, माथुरी तथा वालभी वाचनाओना समन्वय निमित्ते वलभीमां मलेली बन्ने
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