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... ख्यातमाबालगोपालं विरोधे समुपस्थिते । ... जनैर्विवेकी प्रष्टव्यः प्राप्या येन गतिः शुभा ॥२०॥
अन्वय-ख्यातं (इदं) आबालगोपालं समुपस्थिते विरोधे जनैः . विवेकी प्रष्टव्यः येन शुभाः गतिः प्राप्या ॥ २०॥
अर्थ-बालकों से लेकर बड़ों तक में यह प्रसिद्ध है कि विरोध के उपस्थित होने पर विवेकी को अपनी समस्या का समाधान पूछना चाहिए जिससे शुभ गति प्राप्त हो सके।
विशुद्धबुद्धि लोऽपि वृद्धो वृद्धैः प्रपूज्यते । ज्ञानधर्मोदयादत्र शालिवाहनिदर्शनम् ॥२१॥
अन्वय-शानधर्मोदयात् अत्र विशुद्धबुद्धिः बालः अपि वृद्ध: वृद्धः च प्रपूज्यते। शालिवाह निदर्शनम् ॥ २१॥
अर्थ-ज्ञानधर्म के कारण विशुद्ध बुद्धि का बालक भी वृद्ध माना जाता है एवं वृद्ध लोग उसकी पूजा करते हैं इसके उदाहरण शालिवाहन हैं।
॥ इति अर्हद्गीतायां पञ्चमोऽध्यायः ।।
अहंद्गीता
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