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अन्वय-कुमारी वा कुमारः स्यात् करावतरणादिषु शकुनादौ वा स प्रयोज्यः एष शीलनिश्चयः ॥३॥
अर्थ-विवाह जैसे मंगल अवसर पर अथवा किसी शकुन देखते समय बालिका या बालक का प्रयोग होता है। इससे इसका शील का निश्चय होता है।
देवपूजा तीर्थयात्रा स्वनः शुभफलस्तथा। साधोर्दर्शनवाक्यादिः शुभः सद्धर्मनिश्चयः ॥४॥
अन्वय-देवपूजा तीर्थयात्रा शुभफलः स्वप्नः साधोः दर्शनवाक्यादिः शुभः सद्धर्मनिश्चयः ॥ ४॥
अर्थ-देवपूजा, तीर्थयात्रा, शुभ फलदायी स्वप्न, साधुओं के दर्शन एवं उनके उपदेश निश्चय रूप से अच्छे धर्म के लक्षण हैं।
जन्मपत्रग्रहैर्धर्म-प्रत्ययः क्रियतां जनैः। दातुः पूजयितुर्यद्वा दुष्टस्याप्यशुभैः शुभैः ॥५॥
अन्वय-यत् दातुः पूजयितुः वा शुभैः, दुष्टस्य अपि अशुभैः जन्म पत्र ग्रहैः जनैः धर्मप्रत्ययः क्रियतां ॥५॥
अर्थ-दाता अथवा पूजा करने वाले की जन्म पत्री के शुभ ग्रहों एवं दुष्ट के अशुभ ग्रहों से संसार में लोग धर्म का निश्चय करते हैं।
हिंस्रो वाऽनृतवाक् चौरस्तथैव पारदारिकः । दुष्टोऽतिलोभी न क्वापि धर्मस्य प्रत्ययस्त्वयम् ॥ ६॥
अन्वय-हिंस्रो वा अनृतवाक् चौरः तथैव पारदारिकः दुष्टः अतिलोभी (स्यात्) अयं तु न क्वापि धर्मस्य प्रत्ययः ॥६॥
अर्थ-हिंसक, झूठा, चोर, परस्त्रीगामी, दुष्ट, अतिलोभी आदि लोगों में कहीं भी धर्म का दर्शन नहीं होता है । पंचमोऽध्यायः
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