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अन्वय-सुधीः जनः विषेन उन्मितं विषयजं सुखं चित्त-धैर्यविधया देवतां इव निसेवताम् कार्यसाधनं (करोति) किं अहिफेनं अपि कार्यसाधनं न (करोति)॥६॥ .
अर्थ-सुज्ञ विद्वान् विषयुक्त विषयों से उद्भूत सुख को देवताओं की भाँति धैर्य चित्त से सेवन करता है अतः उसे सुफल की प्राप्ति होती है। अफीम विष होता है परन्तु क्या उससे विष शमन का कार्य नहीं होता है ?
विवेचन-“ विषस्य विषमौषधम्" के अनुसार विष भी विष का औषध स्वरूप होता है।
सेवितेन विषयेन दुर्लभा प्राप्यते यदि विरागजा सभा । नागरे पथि यतः शिवं भवेचौर एव स हि पौरपुंगवः ॥ ७॥
अन्वय-विषयेन सेवितेन यदि दुर्लभा विरागजा सभा प्राप्यते यतः नागरे पथि शिवं भवेत् चौर एव स पौर-पुङ्गवः ॥७॥
अर्थ-विषयों का सेवन करते हुए भी यदि विरक्त जनों की संगति प्राप्त हो जाय तो उससे सज्जनों का तो कल्याण होता ही है पर चोर भी श्रेष्ठ नागरिक हो जाता है।
ऐन्द्र ज्योतिः प्रभावेन विकटापि तमोघटाः । दिग्मोहं न मनाक् कुर्यात् तदेव समुपास्यते ॥ ८॥
अन्वय-ऐन्द्रं ज्योतिः प्रभावेन विकटा तमोघटा मनाक् अपि दिग्मोहं न कुर्यात् तत् एव समुपास्यते ॥ ८॥
अर्थ-आत्म ज्योति के प्रभाव से भयंकर अज्ञानान्धकार के बादल थोड़ा भी दिशाभ्रम उत्पन्न नहीं कर सकते हैं अतः उसी की उपासना संसार में की जाती है।
ज्ञानादानं तपः शीलं पूजा ध्यानं च भावना । J Nणान्मोक्षफलं दत्ते नामृतं ज्ञानतः परम् ॥ ९॥
अर्हद्गीता
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