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अन्वय-ज्ञानात् दानं तपः शीलं पूजा ध्यानं च भावना क्षणात् मोक्षफलं दत्ते (अत) शानतः परं न अमृतं विद्यते ॥९॥
अर्थ-ज्ञान के प्रभाव से ही दान, तप, शील, पूजा, ध्यान एवं भावना क्षण भर में ही मोक्ष का फल प्रदान करते हैं अतः संसार में ज्ञान से परे कुछ भी नहीं है। ज्ञान के बिना दूसरा अमृत नहीं है। ज्ञान अमृत है।
पथ्यं विनापि भैषज्यं नैरुज्यं कुरुते जने । तथा ज्ञानं विना कष्टं स्पष्टं निष्टंकयेच्छिवम् ॥ १० ॥
अन्वय-भैषज्यं विना (केवलं) पथ्यं जने नैरुज्यं कुरुते तथा ज्ञानं कष्टं विना स्पष्टं शिवं निष्टकयेत् ॥ १० ॥
अर्थ-बिना दवा के भी केवल पथ्य ही मनुष्य में निरोगता उत्पन्न कर देता है वैसे ही तपस्या के बिना अकेला ज्ञान स्पष्ट रूप से मोक्ष का संधान करवा देता है।
विना ज्ञानं न दानादिरवदातक्रिया मनाक् । फलं किञ्चन संधत्ते प्रत्युतानर्थसंभवः ॥ ११ ॥
अन्वय-ज्ञानं विना दानादिः अवदातक्रिया न मनाक् किञ्चन फलं संधत्ते प्रत्युत अनर्थसंभवः ॥ ११॥
अर्थ-ज्ञान के बिना दान आदि शुद्ध क्रियाएं थोड़ा भी फल प्राप्त नहीं करवा सकती हैं प्रत्युत अनर्थ को उत्पन्न करती हैं।
विवेचन-ज्ञान के बिना दान अहंकार पैदा कर देता है। अभिमान से व्यक्ति राग द्वेषादि कषायों में पड़ जाता है एवं अन्ततोगत्वा विनष्ट हो जाता है।
ज्ञानं चक्षुः स्वतो जन्तो मार्गामार्गविवेचनात् । विश्वप्रकाशात् सहस्रः सहस्रांशूदयायते ॥ १२ ॥
अन्वय-जन्तोः स्वतः मार्गामार्गविवेचनात् शानं चक्षुः विश्वप्रकाशात् सहस्त्रः सहस्त्र-अंशु-उदयायते ॥ १२॥
अभ्याय तृतीयः
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