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________________ अर्थ - उन अर्हतों द्वारा कहे गए सूत्रों को गीत कहा जाता है एवं उसके अर्थ एवं भाष्य आदि को जानने वाले श्रेष्ठज्ञानी गीतार्थ कहे जाते हैं । विवेचन - ज्ञानियों को गीतार्थ भी कहा जाता है अर्थात् गीत या सूत्र के अर्थ को जानने वाले आचार्य विद्वान् । गीतार्थमननात्पूज्यः श्रीगीतार्थोऽपि सूरिवत् । अतः प्रथमतो गीताभ्यास एव विधीयताम् ॥ १६ ॥ अन्वय - श्री गीतार्थोऽपि सूरिवत् अतः गीतार्थ मननात् पूज्य: अतः प्रथमतः गीताभ्यास एव विधीयताम् ॥ १६ ॥ अर्थ - उन सूत्रों के अर्थ एवं उनके जानने वालों की आचार्यों की तरह प्रतिष्ठा है । अतः उन सूत्रों के अर्थ भाष्यादि का मनन करने से साधक भी पूज्य बन जाता है । इसीलिए साधक को सर्व प्रथम गीताभ्यास या सूत्रों का अभ्यास कराना चाहिए अथवा ज्ञान-मार्ग की ओर प्रवृत्त होना चाहिए । १२ [ ऋष्यादि ] ऋषिः - ॐ अस्य श्री अर्हद्गीताख्यपरमागमबीजमंत्ररूपस्य सकलशास्त्ररहस्यभूतस्य श्री गौतम ऋषिः ।। छंदः - अनुष्टुप् छंदः ॥ देवता - श्री सर्वज्ञो जिनः परमात्मा देवता ॥ बीजं - ' प्राप्तेऽपि नृभवे यत्नः कार्यः प्राणभृता तथा ' इति बीजं ॥ शक्तिः - 'येनात्मात्मन्यवस्थाता तद्वैराग्यं प्रशस्यते ' इति शक्तिः ।। श्री अहद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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