________________ अर्थ-लिपिन्यास में जिसकी आकृति गुरु अवस्था में टेढी ऽ होती है उस अकार का वाच्य संसारी जीव होता है। यह प्रस्तारवान् (गतिमान् ) होता है। विश्राम्यति यथा छन्दोरूपेभ्यः केवलोऽव्ययः। अकारो लाघवादेवं मात्रयार्यागणेष्वपि // 15 // अन्वय-यथा लाघवात् केवलः अव्ययः छन्दोरूपेभ्यः विश्राम्यति तथा अकारोऽपि मात्रया आर्यागणेषु (विश्राम्यति)॥१५॥ अर्थ-जिस प्रकार ह्रस्वमात्रा के कारण कैवल्य स्वरूप अव्यय परमात्मा छन्द रूपों से शान्त (निवृत्त) होते हैं वैसे ही हस्व अकार अपनी लघु मात्रा के कारण आर्यादि मात्रिक छन्दों में विश्राम करता है / ___ आर्या छन्द मात्रक छन्द है इसके प्रथम व तृतीय पाद में द्वादश मात्राएं होती है। सर्वादिमोक्तानुसृते-र्येषां पर्थितिर्वरा / वर्णानां विदुषां तेषां प्रतिष्ठा बृहती ध्रुवा / / 16 // अन्वय-अनुसृतेः येषां वर्णानां पंक्तिः सर्वादिमा उक्ता प्रतिष्ट बृहती ध्रुवा। तेषां धृति विदुषां वरा // 16 // अर्थ-नियमानुसार जिन अ इ उ ऋ लू ह्रस्व वर्गों की पंक्ति का सर्वप्रथम विधान किया गया है उनकी प्रतिष्ठा निश्चय रूप से विशाल है उनका धारण विद्वानों के लिए श्रेयस्कर है। अनुश्रुति के अनुसार जो संसार से सर्वप्रथम मोक्ष गये हैं उन ऋषभदेव भगवान की गणना सर्वप्रथम मानी गई है उनकी प्रतिष्ठा निश्चय रूप से महान् है तथा उनका धैर्य विद्वानों के लिए श्रेष्ठ है। ये मीमांसाहता लोके येषां मन्युक्रिया प्रिया / नेश्वरस्तैस्सर्वज्ञो प्राप्यते समये क्वचित् // 17 // अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org