________________ यगण दर्श न ज्ञा न चारित्र (5) / / (s) ऽ / गुरु लघु गुरु गुरु लघु गुरु गुरु लघु वृत्ते ज्ञा ने दर्श ने ss ss ऽ ।ऽ छन्द नियमन गणों से होता हैं / गणमात्रा सूत्रक सूत्र इस प्रकार हैं " यमाताराजभानसलगं" यमाता / भानस / / भगण मातारा sss मगण नसल / / / नगण ताराज ss / तगण सलग / / 5 सगण राजभा 515 रगण ल-- लघु जभान / / जगण ग-- 5 गुरु यः सुदेव्यास्तनुजन्मा गणोऽस्य यगणः स्मृतः / तवर्णमुख्येऽपि लघौ युक्ताग्रे गुरुता द्विधा / / 3 // अन्वय-यः सुदेव्याः तनुजन्माः अस्य गणः यगणः स्मृतः तद्वर्णमुख्ये अपि लधौ अग्रेद्विधा गुरुता युक्ता // 3 // C iss अर्थ-ऋषभदेव भगवान् सुदेवी ( मरुदेवी ) के गर्भ से उत्पन्न हुये हैं उन सुदेवी का गण / 5 5 यगण है। ये सुदेवी के पुत्र समस्त वर्गों में मुख्य होते हुए भी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लघुता में लीन रहे जिससे उन्हें आगे श्रमण रूप में व प्रथम तीर्थङ्कर रूप में गुरुता प्राप्त हुई। छन्दशास्त्र में यगण का प्रथमाक्षर लघु व आगे के दो अक्षर गुरू होते हैं इसका देवता गतिवाचक जल एवं सदा शुभ रहने के कारण इसका फल वृद्धि रूप होता है / सुदेवी के गर्भ से जन्मे, साधारण मानव ऋषभदेव अपनी साधना के बल पर प्रथम योगी व प्रथम तीर्थंकर बने / षत्रिंशत्तमोऽध्यायः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org