________________ षत्रिंशत्तमोऽध्यायः सदाचरण धर्म का स्वरूप [ श्री गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा है कि नाना शास्त्रों की बातों से धर्म की एकता प्रतिपादित नहीं होती है अतः कृपा कर धर्म के तत्त्व का निरूपण कीजिये। भगवान् ने छन्द शास्त्रानुसार गणों के माध्यम से धर्म का स्वरूप समझाया है एवम् बताया है कि लघुता से ही प्रभुता मिल सकती है अहिंसा सर्वोत्कृष्ट है एवम् यज्ञ कर्म करने वाले ईश्वर की सिद्धि नहीं कर सकते हैं। क्रोधी की कभी भी उर्ध्व गति नहीं हो सकती है छन्द शास्त्र में यति का बड़ा महत्त्व है वैसे ही मानव जीवन में यति धर्म का बहुत महत्त्व है। छन्द शास्त्र में कर्ण कटु शब्दों को त्याग दिया जाता है वैसे ही साधु जीवन में मधुरता का वरण किया जाता है। छन्द विशारद ज्ञानियों ने सदाचरण से सुख की प्राप्ति का उपदेश दिया है। यही धर्म का सार है।] * * * पत्रिंशत्तमोऽध्यायः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org