________________ अर्थ-अब नमः शब्द की व्याख्या करते है :- नमः शब्द से विनय भक्ति, विनय व्रत अथवा विशिष्ट नय तीन अर्थ सिद्ध होते हैं / इन तीनों से शास्त्र सम्मत ज्ञान सिद्ध होता है। विनय भक्ति से सम्यगदर्शन, विनय व्रतसे सम्यक्-चारित्र तथा विशिष्ट नयसे सम्यग्-ज्ञान लिया जाता है। नकारेष्टावतश्चैको मे नंदा 9 षड विसर्गके। चतुर्विंशतिरेखास्यानष्टजातकचक्रजाः // 20 // अन्वय-नष्टजातकचक्रजाः नकारे अष्टौ अतः च एकः मे नन्दा विसर्गके षड् (एवं) चतुर्विंशतिरेखा स्यात् / / 20 // अर्थ-अब नमः शब्द का रेखाओं में अंकन द्वारा 24 तीर्थंकरों का आभास देते हैं :- यदि गोलाई रहित नमः शब्द का आलेखन किया जाय तो न् नकार में आठ रेखाएं अ में एक रेखा म् में नौ रेखाएं एवं विसर्ग में छः रेखाएं इस प्रकार नमः में 24 रेखाएं सिद्ध होती है जो 24 तीर्थंकरों की वाचक हैं। लोकभावनया चैवं लोकालोकावलोकनात् / लोको भवत्यकारस्यार्हतः सारूप्यभाग भुवि // 21 // अन्वय-एवं लोकभावनया लोकालोकावलोकनात् भुवि लोकः अकारस्य अर्हतः सारूप्यभाग् भवति // 21 // ___ इअर्थ-इस प्रकार लोक भावना से लोकालोक का अवलोकन किया जाय तो संसार में लोक अकार रूप अर्हत् के समान सिद्ध होता है एवं अर्हत् लोकव्यापी हो जाते हैं / / // इतिश्रीअहंद्गीतायां कर्मकाण्डे पंचत्रिंशत्तमोऽध्यायः // अहंद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org