________________ एक ल में समाहार हो गया है। स्वभाव से ही क्रूर कर्म करने वाले जो परमाधार्मिक देव हैं वे भी इस एक ही वर्ण में समाविष्ट हो जाते हैं। पादयोऽष्टी व्यंतराणां निकायाष्टकवाचकाः। वाय्वाग्निभूजलादीनां बीजेष्वेषां विशेषतः // 10 // अन्वय-पादयोः अष्टौ व्यन्तराणां निकायाष्टकवाचकाः वाय्वाग्नि . भूजलादीनां बीजेषु एषां विशेषतः // 10 // अर्थ-प से लेकर व पर्यन्त जो आठ ( प फ ब भ य र ल व = आठ) वर्ण हैं वे व्यंतरों के आठ समूह के वाचक हैं। वायु अग्नि भूमि एवं जलादि के बीजों में इनकी विशेषता रहती है / चातुर्वण्यं नृणामिष्टं पाये वर्णचतुष्टये / ज्योतिष्काणां तथा ताये चातुर्विध्यं व्यवस्थितम् // 11 // अन्वय-पाद्ये वर्णचतुष्टये नृणां चातुर्वयं इष्टम् / तथा ताये ज्योतिष्काणां चातुर्विध्यं व्यवस्थितम् / / 11 // - अर्थ-प फ ब भ आदि चारों वर्षों में मनुष्यों के ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य एवं शूद्र चार वर्ण इष्ट हैं वैसे ही त थ द ध में तारे, ग्रह, नक्षत्र, सूर्य, चन्द्र आदि चार प्रकार के प्रकाशक व्यवस्थित हैं। वर्गीयपंचमाः पंच पूर्वेऽर्हन्तः प्रकीर्तिताः। पंचस्वेवजनैरुक्त-स्तद्वा स पारमेश्वरः // 12 // अन्वय-पूर्वे पंच अर्हन्तः वर्गीयपंचमाः प्रकीर्तिताः पंचसु एव जनैः उक्तः तद्वा स पारमेश्वरः // 12 // अर्थ-प्रत्येक वर्ग के पांच अन्तिम अनुस्वार वर्ण तो अर्हत् रूप में कहे गए हैं। इन पांचों में पंच परमेष्ठि भगवान् का पारमैश्वर्य निहित है ऐसा तो लोग कहते ही हैं। पांच अन्त्य अनुस्वार ङ् ञ् ण न म् पञ्चत्रिंशत्तमोऽध्यायः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org