________________ रक्ष का अर्थ होता है राक्षस अतः ल को असुरवाची भी माना जाता है। पैशाची, प्राकृत एवं नागभाषा में भी ल से र का ग्रहण किया जाता है / मंत्रागमेऽपि लमिति बीजं भूमेनिरूपितम् / यवनानां भुवि क्षेपस्तन्मृतस्यासुराश्रयात् // 7 // अन्यय-मंत्रागमेऽपि लं इति भूमेः बीजं निरूपितम् तत् मृतस्य असुराश्रयात् यवनानां भुवि क्षेपः॥७॥ अर्थ-ल असुरवाची कैसे है यह सिद्ध करते हैं। मंत्रशास्त्र में भी ल को भूमि का बीज बताया गया है। मुदी का असुराश्रयी अर्थात् प्रेतयोनि में पड़ने के कारण यवनों की भूमि में गाड़ा जाता है। तत्राप्येकग्रहे सर्वग्रहन्यायाल्लकारकः / एकः सविन्दुः पायस्त-ल्लिपो बिन्दोर्षनाग्रहात् // 8 // अन्वय-तत्र अपि एकाहे सर्वग्रहन्यायात् लकारकः एकः प्राय, लिपौ बिन्दोः घनाग्रहात् तत् सबिन्दुः // 8 // अर्थ-वहाँ भी एक साधे सब सधे न्याय से लकार एवं रकार एक है। प्रायः लिपि में बिन्दु की अधिकता का आग्रह होने से वह बिन्दुयुक्त यानि लं रूप में लिखा जाता है। परमाधार्मिका एषु स्वभावात् क्रूरकर्मठाः / बह्वालापेऽपि देशाप्तेरेकवर्णे समुच्चयः // 9 // अन्वय-एषु परम अधार्मिकाः स्वभावात् क्रूरकर्मठाः बह्वालापेऽपि देशाप्तेः एकवणे समुश्चयः // 9 // अर्थ-ये लोग (असुरों में ) परम अधार्मिक एवं क्रूर कर्म करने वाले होते हैं। जनश्रुति तथा देश परम्परा के अनुसार इन असुरों का केवल * रलयोरभेदः- पाणिनी। र एव ल में अभेद होता है। 318 अहद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org