________________ अर्थ-उर्ध्व एवं अधोरूप द्वयात्मक होने के कारण 'लं' उर्ध्वलोक तथा अधोलोक रूपात्मक अति विशाल लोक स्वरूप है। सिद्ध रूप को बताने वाला इस के ऊपर का अनुस्वार लोक के ऊपर स्थित सिद्धशिला को बताने वाला है। क्षः क्रौंचबीजं वाहुल्यात्तस्य क्षायाः समाश्रयात् / मातृकान्तस्थितस्यास्य वाच्यो नरकदंडकः // 4 // अन्वय-बाहुल्यात् क्षः क्रौंचबीजं तस्य क्षायाः समाश्रयात् मातृकाअन्तस्थितस्य अस्य नरकदण्डकः वाच्यः // 4 // ___ अर्थ-क्ष मंत्रशास्त्रानुसार क्रौंचबीज है। इसमें नाशभावना का बाहुल्य होने के कारण मातृका में यह नरक दण्डक का वाचक है। लमित्यंतेन सन्दिष्टाः दशाप्यसुरदंडकाः। नष्टा(ष्ट)जातचक्रे हि लमितस्य दिगंकतः // 5 // अन्वय-नष्टजातकचक्रे लं इति अस्य दिगंकतः लं इति अन्तेन . दशापि असुरदण्डकाः सन्दिष्टाः / / 5 // अर्थ-*नष्ट जातक चक्र में लं को दस संख्या माना गया है / अन्तिम लं से दस असुर दण्डकों का संकेत है (लं दसवा अक्षर है य र ल व ष स ह क्ष लं) वाच्यं रक्षोऽपि लक्षाभ्यां बहुधाऽसुरवाचिलः / लः पैशाच्यां प्राकृतो क्तौ नागोक्तावपि लादरः // 6 // अन्वय-लक्षाभ्यां रक्षः अपि वाच्यं बहुधा असुरवाचि लः। लः पैशाच्यां प्राकृतोक्तौ नागोक्तौ अपि लादरः // 6 // अर्थ-ल एवं क्ष लक्ष। इस लक्षको रक्ष भी कहा जा सकता है / * ज्योतिष का पारिभाषिक शब्द / पञ्चत्रिंशत्तमोऽध्यायः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org