________________ प वर्ग के अन्तिम म को छोड़कर ये 24 व्यञ्जन तीर्थंकरों की 24 माताएं हैं। 14 स्वर एवं 10 य व र ल आदि 24 तीर्थंकर कहे गए हैं / तो यह म को छोडकर 24 व्यञ्जन तीर्थंकरों की माताएं मानी गई हैं। 24 तीर्थकर एवं 24 माताएं मिलकर म्वर व्यञ्जन 48 हुए / महाप्रकृतिरंतस्था उष्माणश्च भावानुगाः / यथासौ वर्गसंसर्गाद् ब्राह्म्या पाठे प्रकीर्तिताः // 11 // अन्वय-महाप्रकृतिः अन्तस्थाः उष्माणश्च भवानुगाः यथासौवर्गसंसर्गात् ब्राम्या पाठे प्रकीनिताः // 11 // अर्थ-महान् प्रकृति वाले ( य र ल व) अन्तस्थ (सिद्ध) एवं उप्म संसार का अनुगमन करने वाले (संसारी) होते हैं ये जिस वर्ग के साथ सम्पृक्त होते हैं ब्राह्मी में उनका वैसा ही उच्चारण कहा गया है। __, स श ष ह उष्म व्यंजन माने गये हैं ये जिस वर्ग के साथ मिलते हैं उनका वैसा ही उच्चारण होता है जैसे निः का ह उष्म है पर वह अन्तस्थ य से मिलने पर स्वयं भी अन्तस्थ बन जाता है जैसे निः+यात् से गिर्यात् / वलेबलात् पाणिनिना स्वसूत्र __ पूर्वोपदेशो रहयोwधायि / मिथ्यामतेराश्रयणात्तथापि स्वरेषु पाठः शपसेषु मौलः // 12 // अन्वय-वलेः बलात् पाणिनिना रहयोः स्वसूत्र पूर्वोपदेशः व्यधायि (तत्) मिथ्यामतेः आश्रयणात् तथापि स्वरेषु शषसेषु रहयोः मौलः पाठः // 12 // अर्थ-पाणिनी ने परात्परो बलीयान् सूत्र के बल से र एवं ह का विधान य से पूर्व में कर दिया है परन्तु यह मिथ्या मति के आश्रय से हुआ है क्योंकि श ष स के बाद ही ह का पाठ होता है / 310 अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org