________________ यद्वा चतुर्दशाहन्तस्वराः शब्दानुशासनात् / व्यंजनानुग्रहकराः पृथग् उक्ता दशापरे // 8 // अन्वय-यद्वा शब्दानुशासनात् आर्हन्त स्वराः चतुर्दशः। (एते) व्यञ्जनानुग्रहकराः भवन्ति अपरे दशः पृथग् उक्ताः // 8 // अर्थ-अथवा व्याकरण शास्त्र के अनुसार अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ आर्हन्त स्वर कहे गए हैं ये स्वर व्यञ्जनों का अनुग्रह करने वाले होते हैं। दूसरे 10 व्यञ्जन अलग कहे गए हैं य र ल व श ष स ह क्ष लं। तीर्णत्वं तारकत्वं च बोधकत्वं च बुद्धता / मुक्तत्वं मोचकत्वं चाहतामत्रैवमाहितम् // 9 // अन्वय-तीर्णत्वं तारकत्वं च बोधकत्वं च बुद्धता मुक्तत्वं मोच. कत्वं च अर्हतां अत्र एवं आहितम् // 9 // अर्थ-संसार से पार होने की, पार करने की, बोध देने की, ज्ञान प्राप्ति की, मुक्ति की एवं मोक्ष प्रदान की योग्यता इन 24 अर्हत्स्वरूप वर्गों में ही हैं। तीर्थ प्रभोः प्रवचनं श्रुतशास्त्रमाहु ___ स्तीर्थकराः स्वरवराः श्रुतमूलहेतोः / तव्यजनप्रकृतयोह्यपवर्गकान्तं स्युर्मातरश्चतुरुपाहितविंशकायाः // 10 // अन्वय-प्रभोः प्रवचनं श्रुतशास्त्रं तीर्थ आहुः / श्रूतमूलहेतोः स्वरवराः तीर्थङ्कराः अपवर्गकान्तं तद् व्यञ्जन प्रकृतयः। चतुरुपाहित. विशकाद्याः मातरः स्युः // 10 // अर्थ-प्रभु का प्रवचन श्रुत शास्त्र है यही तीर्थरूप में कहा गया है। आगम के मूल होने के कारण ये श्रेष्ठ स्वर तीर्थङ्कर कहे गए हैं। अपवर्ग - मोक्ष - पवर्ग - संसार चतुस्त्रिंशत्तमोऽध्यायः 309 m Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org