________________ अर्थ-किन्हीं शास्त्रों में ऋ एवं लू वर्गों में नपुंसकता बताई गई है वह असत्य है ह्रस्व स्वर पुल्लिंग होते हैं। दीर्घस्वर स्त्रीलिंग वाची होते हैं / स्वर कभी भी नपुंसक लिंग में नहीं होते हैं। ___ "स्वयं राजन्ते इति स्वराः" स्वर स्वयं प्रकाशमान है। अर्थात् वे निस्सत्व नहीं हो सकते हैं। अकारोऽर्हन् पुरोन्तस्थाख्यानं यस्यारहः कृतम् / उक्ताद्यशम्भुना ब्राह्मी मातृका सा हितायते // 21 // अन्वय-अकारोऽर्हन् यस्य पुरः अन्तस्थाख्यानं रहः कृतम् / ते हिताय सा ब्राह्मी मातृका आद्यशम्भुना उक्ता // 21 // अर्थ-अकार अर्हत् परमात्मा है आगे (र) अन्तस्थ (ह) उष्मादि का आख्यान होने से अरह शब्द सिद्ध होता है इस प्रकार इस ब्राह्मी वर्णमाला को तुम्हारे हित के लिए आद्य तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान ने कहा है। // इति श्रीअर्हद्गीतायां कर्मकाण्डे त्रयस्त्रिंशत्तमोऽध्यायः // 304 अहंद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org