________________ रेफ एवं विसर्ग दोनों स्वतः मुक्तावस्था (निम्संगता ) के द्योतक हैं। यद्यप्युचैर्गतीरेफो व्यंजने स्वरसंगमे / अन्तस्थोऽसौ न तद्धित्वं हकारस्यैव चोष्मणः // 18 // अन्वय-व्यञ्जने स्वरसंगमे यद्यपि रेफः उच्चैः गतिः असौ अन्तस्थः उष्मणः हकारस्य तद्वित्वं न एव / / 18 / / अर्थ-व्यञ्जन के स्वर से संगम होने पर यद्यपि रेफ की उच्च गति अर्थात् यह व्यञ्जन के ऊपर चढ़ जाता है / यह र अन्तस्थ है उप्म हकार के साथ मिलने पर न तो स्वयं का व न हकार का द्वित्व होता है। अर्हम् में रेफ होने पर भी हकार का द्वित्व नहीं हुआ। रेफः स्वभावेन विसर्जनीयः क्लेशप्रवेशं कुरुते प्रजप्तः। अधस्तनस्थानतया हकारो द्वयं न वाक्ये बहुशः प्रयोज्यम् // 19 // अन्वय-रेफ स्वभावेन विसर्जनीयः अधस्तनस्थानतया हकारो प्रजप्तः क्लेश प्रवेशं कुरुते वाक्ये द्वयं बहुशः न प्रयोज्यम् // 19 // अर्थ-रेफ स्वभाव से ही विसर्जनीय है (विसर्गरूप है) ह अध स्थानीय होने के कारण जपादि में क्लेश उत्पन्न करता है। इसलिए इनका वाक्य में बहुत प्रयोग नहीं करना चाहिए। क्लीवत्वं ऋलवणे यत् काप्युक्तं तन्मूषागमे / ह्रस्वाः पुमांसो नार्योऽन्ये स्वराः क्लीवा न कर्हिचित् // 20 // अन्वय-ऋल, वर्णे यत् क्लीबत्वं कापि आगमे यत् उक्तं तन् मृषा ह्रस्वाः पुमांसः अन्ये नार्यः। स्वराः क्लीबा न कर्हिचत् // 20 // त्रयस्तिशत्तमोऽध्यायः 303 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org