________________ अर्थ-काल के दो भाग हैं अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी ॐ का अ अवसर्पिणी वाचक है एवं उ उत्सर्पिणी काल भेद का वाचक है। इन्हीं के योग से कालचक्र सिद्ध होता है यह अहंतों का वचन है। पक्षोऽन्धकारोऽकारेण पूर्वउस्तूज्ज्वलः परः / तो (यो)गे मितिमासः स्यादव्ययत्वेस्य सिद्धता // 7 // अन्वय-अकारेण अन्धकारः पूर्वः पक्षः उः तु परः उज्ज्वल तत् योगे म् इति मासः अव्ययत्वे अस्य सिद्धता स्यात् // 7 // अर्थ-अब शब्द से ॐ का महत्व बताते हैं। अकार पहला कृष्ण पक्ष है एवं उ दूसरा शुक्ल पक्ष है। इनके योग से म अर्थात् मास सार्थक बनता है। यह ॐ इस प्रकार काल वाची भी है। यह ॐ अव्यय हैं इसीसे इसकी सिद्धता है। अहर्दिनमुषारात्रि-रहोरात्रस्तयोर्युजि / सिद्ध एव तथात्मापि ऊर्ध्वगश्चाव्ययः शिवः / / 8 // अन्वय-अहः दिनं उषा रात्रि तयोः युजि अहोरात्रः तथा अव्यय ऊर्ध्वगः शिवः च आत्मा अपि सिद्ध एव // 8 // अर्थ-अह में अ है उषा में उ है अह से दिन उसे रात्रि इनके योग से रात दिन। दिन रात अव्यय हैं। आत्मा के तीन लक्षण है अ से अव्यय उ से उर्ध्वगामी म से मोक्षमार्गी / अ से अव्ययी उ से उर्ध्वगामी एवं म से शिव मोक्षमार्गी यह अत्मा भी सिद्ध स्वरुप ही है। नमस्कारो हि विनयस्तन्मूलं ज्ञानमिष्यते / तन्मूलैव क्रिया ताभ्यां सिद्धो नाम्नायमोमिति // 9 // अन्वय-नमस्कारः हि विनयः तन्मूलं ज्ञानं इष्यते क्रिया तन्मूला एव ताभ्यां सिद्धः नाम्ना अयं ॐ इति // 9 // दिन नष्ट होता है रात्रि भी, पर उनका समुदाय नष्ट नहीं होता हैं। त्रयस्तिशत्तमोऽध्यायः 299 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org