________________ अर्थ-श्री भगवान ने कहा कि प्रथम तीर्थंवर श्री ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को सर्वप्रथन इस वर्णमातृका को पढ़ाया अतः लोकोपकारी इस मातृका का नाम ब्राह्मी पड़ा। ॐकारः प्रथमस्तस्यां तदन्तरक्षरत्रयम् / अस्यात्मनो रक्षणं तत ऊस्ततोमितिमोक्षदम् // 4 // अन्वय-तस्यां ॐकारः प्रथमः तदनन्तरं अक्षरत्रयं / अस्यात्मनः / तत् उ रक्षणं ततः म् इति मोक्षदम् // 4 // __ अर्थ-इस मातृका में ॐ प्रथम है जिसमें तीन अक्षर हैं। अ उ म। इनमें प्रथम अ आत्मा वाची है, उ से रक्षण, तथा म से मोक्ष ग्रहण करना चाहिए। अकारः संवृतः तस्मादहिंसादिक्रियार्थकः / उरुद्योतचोपलंभात् योगावोमिति सिद्धिवाक् // 5 // अन्वय-अकारः संवृत्तः तस्मात् अहिंसादि क्रियार्थकः उ उद्योतः च उपलम्भात् (तयोः ) योगी ओ म् इति सिद्धिवाः // 5 // अर्थ-अकार संवृत है। संवृत का अर्थ है सु चरित जो अहिंसा आदि क्रियाओं का वाचक है (क्रिया) उ प्रकाशक के अर्थ में है अर्थात् ज्ञान। इन अ तथा उ के योग से ओ बनता है एवं म मोक्ष का वाचक है। क्रिया तथा ज्ञान से मोक्ष होता है अतः यह ॐ सिद्धवचन है। "ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः" अकारस्त्ववसर्पिण्या उरित्युत्सर्पिणीपदम्। योगेऽनयोः कालचक्रं सिद्धमुक्तमिहार्हता // 6 // अन्वय-अकारः तु अवसर्पिण्या उ इति उत्सर्पिणीपदम् . अनयोः योगे कालचक्र अर्हता इह सिद्धं उक्तम् // 6 // उपलभ्भ = प्राप्ति। 298 अहंद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org