________________ जिसने आकार को छोड़ दिया है एवं मात्र विसर्ग रूप में स्थित है। आदि काल से साक्षात् विनय के वाचक पद नमः का निर्देश करने वाला जो अः (विसर्ग) है एवं सब कार्य सिद्ध होने के कारण विसर्जनीय निराकार रूप स्थित है वह हमारे कल्याण के लिए है। इस श्लोक में 'ॐ नमः सिद्धम् ' को सिद्ध भगवान का वाचक मंत्र बताया गया है। // इति श्री अहंद्गीतायां कर्मकाण्डे द्वात्रिंशत्तमोऽध्यायः॥ द्वात्रिंशत्तमोऽध्यायः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org